अजीब लोग थे ख़ामोश रह के जीते थे
दिलों में हुर्मत-ए-संग-ए-सदा के होते हुए
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Anwar Masood
Parveen Shakir
Wasi Shah
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
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मुसालहत
इक तेरे सिवा
फिर दिल को रोज़ ओ शब की वही ईद चाहिए
पत्थर की क़बा पहने मिला जो भी मिला है
ये लम्हा लम्हा तकल्लुफ़ के टूटते रिश्ते
ज़िंदगी ऐसे घरों से तो खंडर अच्छे थे
अंजाम क़िस्सा-गो का
धुआँ सिगरेट का बोतल का नशा सब दुश्मन-ए-जाँ हैं
नज़्म
शरीफ़-ज़ादा
सितमगरी भी मिरी कुश्तगाँ भी मेरे थे
शफ़क़-सिफ़ात जो पैकर दिखाई देता है