दिल है मिरा रमना-ए-ग़ज़ालान-ए-ख़याल
बैठें न कभी निचले वो चंचल चोंचाल
सोते में भी रखते हैं जगाए मुझ को
रम उन में हैं कुछ तो पकड़ जिन की मुहाल
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रहमान-ओ-रहीम है वो रब्ब-ए-इबाद
नख़चीर हूँ मैं कश्मकश-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र का
ज़िंदा है अगर यार तो सोहबत बाक़ी
मैं बात कौन से पैरा-ए-बयाँ में करूँ
गो हम भी कुछ ऐसे उन से ख़ुरसंद नहीं
ता-उम्र रहे हम गो सरगर्म-ए-अमल
क्या अर्ज़-ओ-समा में नज़र आता है ख़लल
भूलों उन्हें कैसे कैसे कैसे
क़ुर्ब नस नस में आग भरता है
जब भी करे यलग़ार अफ़्सुर्दा-दिली
ताकीद करो ज़मज़मा-संजान-ए-चमन को
ऐ अहल-ए-फ़रासत बढ़ो बे-ख़ौफ़-ओ-हिरास