गो हम भी कुछ ऐसे उन से ख़ुरसंद नहीं
लेकिन उन के ख़िलाफ़ भी क़मर-बंद नहीं
रोके हमें डर ख़ुदा का ये कहने से
''अबना-ए-ज़माँ क़ाबिल-ए-पैवंद नहीं!''
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(722) Peoples Rate This
अदयान-ओ-मज़ाहिब ओ मिलल की जंगें
कर लुत्फ़-ओ-मुदारा से दिल-ए-ख़ल्क़ को राम
जब भी करे यलग़ार अफ़्सुर्दा-दिली
ज़मीं-नज़ाद हैं लेकिन ज़माँ में रहते हैं
ताकीद करो ज़मज़मा-संजान-ए-चमन को
भूलों उन्हें कैसे कैसे कैसे
क्या अर्ज़-ओ-समा में नज़र आता है ख़लल
हों क्यूँ न मुन्कशिफ़ असरार पस्त-ओ-बाला के
ता-उम्र रहे हम गो सरगर्म-ए-अमल
फूली है शफ़क़ गो कि अभी शाम नहीं है
क़ज़ा से क़र्ज़ किस मुश्किल से ली उम्र-ए-बक़ा हम ने