कर लुत्फ़-ओ-मुदारात से दिल-ए-ख़ल्क़ को राम
बन अफ़्व-ओ-मुवासात से मख़दूम-ए-अनाम
मुस्तग़नी-ए-तर्द-ओ-ता'न कोतह-नज़राँ
रख अपने को वाबस्ता-ए-इंजाह-ए-मराम
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गो हम भी कुछ ऐसे उन से ख़ुरसंद नहीं
जब भी करे यलग़ार अफ़्सुर्दा-दिली
भूलों उन्हें कैसे कैसे कैसे
ज़मीं-नज़ाद हैं लेकिन ज़माँ में रहते हैं
ताकीद करो ज़मज़मा-संजान-ए-चमन को
दिल है मिरा रमना-ए-ग़ज़ालान-ए-ख़याल
हों क्यूँ न मुन्कशिफ़ असरार पस्त-ओ-बाला के
रहमान-ओ-रहीम है वो रब्ब-ए-इबाद
कर लुत्फ़-ओ-मुदारा से दिल-ए-ख़ल्क़ को राम
फूली है शफ़क़ गो कि अभी शाम नहीं है
नख़चीर हूँ मैं कश्मकश-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र का
जब दस्त-ए-ख़िज़ाँ से बिखरे शीराज़ा-ए-गुल