जब दस्त-ए-ख़िज़ाँ से बिखरे शीराज़ा-ए-गुल
बाँधे रख़्त-ए-सफ़र चमन से बुलबुल
यानी कोई उफ़्ताद हो नाज़िल जिस वक़्त
निकलें सब दोस्त दोस्तान-ए-सर-ए-पुल
Javed Akhtar
Habib Jalib
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Faiz Ahmad Faiz
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नख़चीर हूँ मैं कश्मकश-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र का
गो हम भी कुछ ऐसे उन से ख़ुरसंद नहीं
जब भी करे यलग़ार अफ़्सुर्दा-दिली
क़ज़ा से क़र्ज़ किस मुश्किल से ली उम्र-ए-बक़ा हम ने
हर बात है 'ख़ालिद' की ज़माने से निराली
अदयान-ओ-मज़ाहिब ओ मिलल की जंगें
ता-उम्र रहे हम गो सरगर्म-ए-अमल
भूलों उन्हें कैसे कैसे कैसे
दिल है मिरा रमना-ए-ग़ज़ालान-ए-ख़याल
ज़मीं-नज़ाद हैं लेकिन ज़माँ में रहते हैं
क्या अर्ज़-ओ-समा में नज़र आता है ख़लल
रहमान-ओ-रहीम है वो रब्ब-ए-इबाद