थोड़ी सी अक़्ल लाए थे हम भी मगर 'अदम'
दुनिया के हादसात ने दीवाना कर दिया
Rahat Indori
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शौक़िया कोई नहीं होता ग़लत
आँखों से तिरी ज़ुल्फ़ का साया नहीं जाता
मौत का सर्द हाथ भी साक़ी
आगही में इक ख़ला मौजूद है
सूरत के आइने में दिल-ए-पाएमाल देख
आता है कौन दर्द के मारों के शहर में
लज़्ज़त-ए-ग़म तो बख़्श दी उस ने
भूली-बिसरी बातों से क्या तश्कील-ए-रूदाद करें
मय-कदा है यहाँ सकूँ से बैठ
ऐ मिरा जाम तोड़ने वाले
बहर-ए-आलाम बे-किनारा है
बढ़ के तूफ़ान को आग़ोश में ले ले अपनी