हुस्न वालों में कोई ऐसा हो
जो मुझे मुझ से चुरा कर ले जाए
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तिरे बदन के गुलिस्ताँ की याद आती है
ये दिल की राह चमकती थी आइने की तरह
फ़सील-ए-शहर-ए-तमन्ना में दर बनाते हुए
अभी दिलों की तनाबों में सख़्तियाँ हैं बहुत
अना को बाँधता रहता हूँ अपने शे'रों में
अपना दीवाना बना कर ले जाए
मुनाफ़िक़त का निसाब पढ़ कर मोहब्बतों की किताब लिखना
जो कुछ निगाह में है हक़ीक़त में वो नहीं
निगाह के लिए इक ख़्वाब भी ग़नीमत है
कहाँ किसी पे ये एहसान करने वाला हूँ
अस्ल हालत का बयाँ ज़ाहिर के साँचों में नहीं
किसी नज़र ने मुझे जाम पर लगाया हुआ है