खिला रहेगा किसी याद के जज़ीरे पर
ये बाग़ मैं जिसे वीरान करने वाला हूँ
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मक़ाम-ए-शौक़ से आगे भी इक रस्ता निकलता है
करता कुछ और है वो दिखाता कुछ और है
इस अँधेरे में जो थोड़ी रौशनी मौजूद है
अना को बाँधता रहता हूँ अपने शे'रों में
अभी है हुस्न में हुस्न-ए-नज़र की कार-फ़रमाई
दे रहे हैं जिस को तोपों की सलामी आदमी
दिल-ए-मुज़्तर वफ़ा के बाब में ये जल्द-बाज़ी क्या
दिल भी आप को भूल चुका है
गुज़रते वक़्त की कोई निशानी साथ रखता हूँ
अस्ल हालत का बयाँ ज़ाहिर के साँचों में नहीं
धूप जब ढल गई तो साया नहीं