बन रहे हैं सतह-ए-दिल पर दाएरे
तुम ने तो पत्थर कोई फेंका नहीं
Parveen Shakir
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Anwar Masood
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Allama Iqbal
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(699) Peoples Rate This
रोके से कहीं हादसा-ए-वक़्त रुका है
लाई है किस मक़ाम पे ये ज़िंदगी मुझे
फ़रेब-ए-निकहत-ओ-गुलज़ार से बचाओ मुझे
नशेमन ही के लुट जाने का ग़म होता तो क्या ग़म था
ग़म से मंसूब करूँ दर्द का रिश्ता दे दूँ
आँधियों का काम चलना है ग़रज़ इस से नहीं
अब छलकते हुए साग़र नहीं देखे जाते
उस शजर के साए में बैठा हूँ मैं
काटी है ग़म की रात बड़े एहतिराम से