जिस महल में मैं रहना चाहता हूँ
उस पर पहरे बिठा दिए गए हैं
और उस के अंदर एक शख़्स रहता है
जो ख़ुद को बादशाह कहता है
Mir Taqi Mir
Gulzar
Rahat Indori
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Wasi Shah
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
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नफ़रत से मोहब्बत को सहारे भी मिले हैं
हमारी ज़िंदगी क्या है मोहब्बत ही मोहब्बत है
कसाफ़त
दर्द हर रंग से अतवार-ए-दुआ माँगे है
दिल ये कहता है कि इक आलम-ए-मुज़्तर देखूँ
काला समुंदर
ताज़ा मंज़र
न आसमाँ की कहानी न वाँ का क़िस्सा लिख
तीन मुख़्तसर नज़्में
किसे बताएँ कि क्या ग़म रहा है आँखों में
कान सुनते तो हैं लेकिन न समझने के लिए
वरक़-ए-इंतिख़ाब दिल में है