धूप निकली है बारिशों के ब'अद
वो अभी रो के मुस्कुराए हैं
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हज़ारों साल चलने कि सज़ा है
ख़ुद से मिलना मिलाना भूल गए
पल भर उसे रुला कर देख
तेरे जाते ही ये हुआ महसूस
आँखों में तूफ़ान बहुत है
हम सा दीवाना कहाँ मिल पाएगा इस दहर में
दोस्ती बंदगी वफ़ा-ओ-ख़ुलूस
काँटों में जो फूल खिला है
आप के भी हो जाएँगे हम
ख़ुद-कुशी करने में भी नाकाम रह जाते हैं हम
जाने किस की आहट का इंतिज़ार करता है
वो जब अपने लब खोलें