दोस्ती बंदगी वफ़ा-ओ-ख़ुलूस
हम ये शम्अ' जलाना भूल गए
Habib Jalib
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रंग ही से फ़रेब खाते रहें
वस्ल की रात वो तन्हा होगा
वो जब अपने लब खोलें
जाने किस की आहट का इंतिज़ार करता है
खोया खोया रहता है
आप के भी हो जाएँगे हम
ख़ुद-कुशी करने में भी नाकाम रह जाते हैं हम
धूप निकली है बारिशों के ब'अद
प्यार में ताना-बाना चलता रहता है
तोड़ कड़ियाँ ज़मीर कि 'अंजुम'
हम सा दीवाना कहाँ मिल पाएगा इस दहर में