रंग ही से फ़रेब खाते रहें
ख़ुशबुएँ आज़माना भूल गए
Rahat Indori
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आप के भी हो जाएँगे हम
ख़ुद-कुशी करने में भी नाकाम रह जाते हैं हम
प्यार में ताना-बाना चलता रहता है
हज़ारों साल चलने कि सज़ा है
ख़ुद से मिलना मिलाना भूल गए
पल भर उसे रुला कर देख
दोस्ती बंदगी वफ़ा-ओ-ख़ुलूस
तोड़ कड़ियाँ ज़मीर कि 'अंजुम'
वो जब अपने लब खोलें
इक झलक तेरी जो पाई होगी
जाने किस की आहट का इंतिज़ार करता है