तुम मिरे कमरे के अंदर झाँकने आए हो क्यूँ
सो रहा हूँ चैन से हूँ ठीक है सब ठीक है
Gulzar
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वो शब-ए-ग़म जो कम अँधेरी थी
ख़ुद अपनी चाल से ना-आश्ना रहे है कोई
शाम का रक़्स
कोई इशारा कोई इस्तिआ'रा क्यूँकर हो
हम भी 'असलम' इसी गुमान में हैं
मौत का इंतिज़ार सफ़ेद चाक से
ख़ौफ़
नमी उतर गई धरती में तह-ब-तह 'असलम'
इंतिज़ार
कोशिश है गर उस की कि परेशान करेगा
हज़ार रास्ते बदले हज़ार स्वाँग रचे
तमाम खेल-तमाशों के दरमियान वही