ताज जब मर्द के माथे पे नज़र आता है
यक-ब-यक ख़ूँ मिरी आँखों में उतर आता है
जब नज़र आता है औरत की जबीं पर मुझ को
इज्ज़-ओ-तस्लीम का हर नक़्श उभर आता है
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बताऊँ क्या तुझे ऐ हम-नशीं किस से मोहब्बत है
साक़ी-ए-गुलफ़ाम बा-सद एहतिमाम आ ही गया
धुआँ सा इक सम्त उठ रहा है शरारे उड़ उड़ के आ रहे हैं
अक़्ल की सतह से कुछ और उभर जाना था
हुस्न फिर फ़ित्नागर है क्या कहिए
तआरुफ़
मुसाफ़िर
सरमाया-दारी
फिर मिरी आँख हो गई नमनाक
बहुत मुश्किल है दुनिया का सँवरना
हिज्र में कैफ़-ए-इज़्तिराब न पूछ
आहंग-ए-नौ