चुरा के लाए हैं कुछ लोग लफ़्ज़ के मोती
इन्हें वो बेच रहे हैं दुकाँ दुकाँ हो कर
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Habib Jalib
Parveen Shakir
Wasi Shah
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(750) Peoples Rate This
क़रीब से न गुज़र इंतिज़ार बाक़ी रख
घटा ज़ुल्फ़ों की जब से और काली होती जाती है
हर्फ़ लर्ज़ां हैं कि होंटों पे वो आएँ कैसे?
उठे जाते हैं दीदा-वर सभी आहिस्ता आहिस्ता
मसर्रत और ग़म दोनों की कोई हद ज़रूरी है
ग़म ये नहीं कि ग़म से मुलाक़ात हुई
शिकायत है बहुत लेकिन गिला अच्छा नहीं लगता
वो बात मुझ को तो दुश्नाम सी लगी है 'अतीक़'