क़रीब से न गुज़र इंतिज़ार बाक़ी रख
क़राबतों का मगर ए'तिबार बाक़ी रख
Parveen Shakir
Gulzar
Anwar Masood
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(689) Peoples Rate This
चुरा के लाए हैं कुछ लोग लफ़्ज़ के मोती
उठे जाते हैं दीदा-वर सभी आहिस्ता आहिस्ता
घटा ज़ुल्फ़ों की जब से और काली होती जाती है
मसर्रत और ग़म दोनों की कोई हद ज़रूरी है
शिकायत है बहुत लेकिन गिला अच्छा नहीं लगता
वो बात मुझ को तो दुश्नाम सी लगी है 'अतीक़'
ग़म ये नहीं कि ग़म से मुलाक़ात हुई
हर्फ़ लर्ज़ां हैं कि होंटों पे वो आएँ कैसे?