जी न सकूँ मैं जिस के बग़ैर
अक्सर याद न आया वो
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सौ रंग है किस रंग से तस्वीर बनाऊँ
क्या बात निराली है मुझ में किस फ़न में आख़िर यकता हूँ
'अतहर' तुम ने इश्क़ किया कुछ तुम भी कहो क्या हाल हुआ
वो दौर क़रीब आ रहा है
इतने दिन के बाद तू आया है आज
कभी साया है कभी धूप मुक़द्दर मेरा
इक आग ग़म-ए-तन्हाई की जो सारे बदन में फैल गई
बे-नियाज़ाना हर इक राह से गुज़रा भी करो
लम्हों के अज़ाब सह रहा हूँ
दम-ब-दम बढ़ रही है ये कैसी सदा शहर वालो सुनो