दिल ठिकाने हो तो सब कुछ है अज़ीज़
जी बहल जाता है सहरा क्यूँ न हो
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निगाह-ए-नाज़ में हया भी है
शोख़ी उफ़-रे तिरी नज़र की
मोहब्बत का मुझे दावा ही क्या है
बढ़ गईं गुस्ताख़ियाँ मेरी सज़ा के साथ साथ
जफ़ा देखनी थी सितम देखना था
नाले हैं न आहें हैं न रोना न तड़पना
ज़ालिम तिरे वादों ने दीवाना बना रक्खा
ज़ोर क़िस्मत पे चल नहीं सकता
हुस्न है दाद-ए-ख़ुदा इश्क़ है इमदाद-ए-ख़ुदा
अभी कुछ है अभी कुछ है अभी कुछ
दर्द जाता नज़र नहीं आता
दुनिया की रविश देखी तिरी ज़ुल्फ़-ए-दोता में