हम ही उन को बाम पे लाए और हमीं महरूम रहे
पर्दा हमारे नाम से उट्ठा आँख लड़ाई लोगों ने
Mohsin Naqvi
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Allama Iqbal
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Faiz Ahmad Faiz
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रोज़ मामूरा-ए-दुनिया में ख़राबी है 'ज़फ़र'
बनाया ऐ 'ज़फ़र' ख़ालिक़ ने कब इंसान से बेहतर
क्यूँकि हम दुनिया में आए कुछ सबब खुलता नहीं
गई यक-ब-यक जो हवा पलट नहीं दिल को मेरे क़रार है
गालियाँ तनख़्वाह ठहरी है अगर बट जाएगी
तुफ़्ता-जानों का इलाज ऐ अहल-ए-दानिश और है
हिज्र के हाथ से अब ख़ाक पड़े जीने में
भरी है दिल में जो हसरत कहूँ तो किस से कहूँ
सब रंग में उस गुल की मिरे शान है मौजूद
बुलबुल को बाग़बाँ से न सय्याद से गिला
जब कि पहलू में हमारे बुत-ए-ख़ुद-काम न हो