देने वाले तुझे देना है तो इतना दे दे
कि मुझे शिकवा-ए-कोताही-ए-दामाँ हो जाए
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सीने में दिल है दिल में दाग़ दाग़ में सोज़-ओ-साज़-ए-इश्क़
कुछ लगी दिल की बुझा लूँ तो चले जाइएगा
कौन सा घर है कि ऐ जाँ नहीं काशाना तिरा और जल्वा-ख़ाना तिरा
उस को दुनिया और न उक़्बा चाहिए
मिरे दर्द-ए-निहाँ का हाल मोहताज-ए-बयाँ क्यूँ हो
बुत भी इस में रहते थे दिल यार का भी काशाना था
पर्दे उठे हुए भी हैं उन की इधर नज़र भी है
अपनी हस्ती का अगर हुस्न नुमायाँ हो जाए
क्या गिला इस का जो मेरा दिल गया
इश्क़ के आसार हैं फिर ग़श मुझे आया देखो
बरहमन मुझ को बनाना न मुसलमाँ करना
अल्लाह-रे फ़ैज़ एक जहाँ मुस्तफ़ीद है