बेदम ये मोहब्बत है या कोई मुसीबत है
जब देखिए अफ़्सुर्दा जब देखिए जब मग़्मूम
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ऐ जुनूँ क्यूँ लिए जाता है बयाबाँ में मुझे
ये ख़ुसरवी-ओ-शौकत-ए-शाहाना मुबारक
हम मय-कदे से मर के भी बाहर न जाएँगे
मैं यार का जल्वा हूँ
बरहमन मुझ को बनाना न मुसलमाँ करना
अपनी हस्ती का अगर हुस्न नुमायाँ हो जाए
जुस्तुजू करते ही करते खो गया
में ग़श में हूँ मुझे इतना नहीं होश
उस को दुनिया और न उक़्बा चाहिए
न कुनिश्त ओ कलीसा से काम हमें दर-ए-दैर न बैत-ए-हरम से ग़रज़
हलाक-ए-तेग़-ए-जफ़ा या शहीद-ए-नाज़ करे
बताए देती है बे-पूछे राज़ सब दिल के