नई-देहली

क्या रंग मिरे शहर का गंगा-जमनी है

देहली नई उजड़ी हुई देहली में बनी है

क़ब्रों का पता है न मज़ारों का ठिकाना

ये शहर की ता'मीर है या गोर-कनी है

अर्बाब-ए-मशाहीर का लेने के लिए नाम

कुछ दौर-ए-गुज़िश्ता की भी तारीख़ छनी है

'इर्विन' का कहीं बुत तो क्लाइव की कहीं स्ट्रीट

मैदान में सब्ज़े से बहार-ए-चमनी है

रहते हैं यहाँ शाही दफ़ातिर के मुलाज़िम

जिन को न कुछ एहसास-ए-ग़रीबुल-वतनी है

आइना-ए-ख़ुरशीद को भी काट कर रख दे

जो ख़ाक का ज़र्रा है वो हीरे की कनी है

क्या कहते हैं वो बेकस-ओ-नाचार कि जिन को

इस शहर के बसने से गम-ए-बे-वतनी है

खेती जो नहीं भीक पे है इन का गुज़ारा

हाथों में ही कश्कोल गले में कफ़नी है

ये रंग भी कुछ दिन में बदल जाएगा 'कैफ़ी'

क्यूँ ये नई-देहली सबब-ए-दिल-शिकनी है

(763) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Nai-dehli In Hindi By Famous Poet Chandar Bhan Kaifi Delhwi. Nai-dehli is written by Chandar Bhan Kaifi Delhwi. Complete Poem Nai-dehli in Hindi by Chandar Bhan Kaifi Delhwi. Download free Nai-dehli Poem for Youth in PDF. Nai-dehli is a Poem on Inspiration for young students. Share Nai-dehli with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.