सोचता क्या हूँ तिरे बारे में चलते चलते
तू ज़रा पूछना ये बात ठहर कर मुझ से
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कोई नाम है न कोई निशाँ मुझे क्या हुआ
किसे ढूँडता हूँ मैं अपने क़़ुर्ब-ओ-जवार में
पड़ गया है ख़ुदा से काम मुझे
मैं सुब्ह ख़्वाब से जागा तो ये ख़याल आया
रात गहरी है मगर एक सहारा है मुझे
ज़ुल्म करता हूँ ज़ुल्म सहता हूँ
जो दिल को पहले मयस्सर था क्या हुआ उस का
जाने मैं कौन था लोगों से भरी दुनिया में
इस लिए दिल बुरा किया ही नहीं
अच्छा है तू ने इन दिनों देखा नहीं मुझे
जानता हूँ कि कई लोग हैं बेहतर मुझ से