आम है इज़्न कि जो चाहो हवा पर लिख दो
इश्क़ ज़िंदा है ज़रा दस्त-ए-सबा पर लिख दो
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ये क्या हुआ कि सभी अब तो दाग़ जलने लगे
है मेरी आँखों में अक्स-ए-नविश्ता-ए-दीवार
शौक़ आसूदा-ए-तहलील-ए-मुअम्मा न हुआ
मैं तिरे संग कैसे चलूँ हम-सफ़र तू समुंदर है मैं साहिलों की हवा
क्या बताएँ क्या कल शब आख़िरी पहर देखा
तुझे ख़बर ही नहीं है ये क़िस्सा-ए-कोताह
शुहूद-ए-दिल-ज़दगाँ मंज़रों में रख आना
शिकस्त-ए-आसमाँ हो जाऊँगा मैं
अक्स कुछ न बदलेगा आइनों को धोने से
मक्र-ए-हयात रुख़ की क़बा भी उतार दी