अक्स कुछ न बदलेगा आइनों को धोने से
आज़री नहीं आती पत्थरों पे रोने से
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शौक़ आसूदा-ए-तहलील-ए-मुअम्मा न हुआ
शौक़-ए-बेहद ने किसी गाम ठहरने न दिया
वो क़ाफ़िला जो रह-ए-शाएरी में कम उतरा
ये क्या हुआ कि सभी अब तो दाग़ जलने लगे
हैं इन में बंद किसी अहद-ए-रस्त-ख़ेज़ के अक्स
मता-ए-दर्द मआल-ए-हयात है शायद
है मेरी आँखों में अक्स-ए-नविश्ता-ए-दीवार
तू मिरी इब्तिदा तू मिरी इंतिहा मैं समुंदर हूँ तू साहिलों की हवा
शिकस्त-ए-आसमाँ हो जाऊँगा मैं
शुहूद-ए-दिल-ज़दगाँ मंज़रों में रख आना