शौक़-ए-बेहद ने किसी गाम ठहरने न दिया
वर्ना किस गाम मिरा ख़ून-ए-तमन्ना न हुआ
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मैं तिरे संग कैसे चलूँ हम-सफ़र तू समुंदर है मैं साहिलों की हवा
शुहूद-ए-दिल-ज़दगाँ मंज़रों में रख आना
तू मिरी इब्तिदा तू मिरी इंतिहा मैं समुंदर हूँ तू साहिलों की हवा
मक्र-ए-हयात रुख़ की क़बा भी उतार दी
मिरे चराग़ो मिरा गंज-ए-बे-कराँ ले लो
अब मुझ से सँभलती नहीं ये दर्द की सौग़ात
उदास शाम में पज़मुर्दा बाद बन के न आ
हूँ वारदात का ऐनी गवाह मैं मुझ से
अब उस मक़ाम पे है मौसमों का सर्द मिज़ाज
क्या बताएँ क्या कल शब आख़िरी पहर देखा
खो बैठी है सारे ख़द-ओ-ख़ाल अपनी ये दुनिया
वो क़ाफ़िला जो रह-ए-शाएरी में कम उतरा