हूँ वारदात का ऐनी गवाह मैं मुझ से
ये मेरी मौत से पहले मिरा बयाँ ले लो
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तुझे ख़बर ही नहीं है ये क़िस्सा-ए-कोताह
शुहूद-ए-दिल-ज़दगाँ मंज़रों में रख आना
शौक़-ए-बेहद ने किसी गाम ठहरने न दिया
वो क़ाफ़िला जो रह-ए-शाएरी में कम उतरा
मता-ए-दर्द मआल-ए-हयात है शायद
अक्स कुछ न बदलेगा आइनों को धोने से
शौक़ आसूदा-ए-तहलील-ए-मुअम्मा न हुआ
उन्हें गुमाँ कि मुझे उन से रब्त है 'सालिम'
खो बैठी है सारे ख़द-ओ-ख़ाल अपनी ये दुनिया
आम है इज़्न कि जो चाहो हवा पर लिख दो
हौसला सब ने बढ़ाया है मिरे मुंसिफ़ का
ये क्या हुआ कि सभी अब तो दाग़ जलने लगे