दिन अंधेरों की तलब में गुज़रा
रात को शम्अ जला दी हम ने
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Rahat Indori
Gulzar
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Jaun Eliya
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
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ख़्वाब कहाँ से टूटा है ताबीर से पूछते हैं
कोई मुँह फेर लेता है तो 'क़ासिर' अब शिकायत क्या
इस तरह क़हत-ए-हवा की ज़द में है मेरा वजूद
बारूद के बदले हाथों में आ जाए किताब तो अच्छा हो
अकेला दिन है कोई और न तन्हा रात होती है
एक ज़ाती नज़्म
गुलाबों के नशेमन से मिरे महबूब के सर तक
मिलने की हर आस के पीछे अन-देखी मजबूरी थी
प्यार गया तो कैसे मिलते रंग से रंग और ख़्वाब से ख़्वाब
कहते हैं इन शाख़ों पर फल फूल भी आते थे
समीता-पाटिल
अपने अशआर को रुस्वा सर-ए-बाज़ार करूँ