Love Poetry of Govind Gulshan
नाम | गोविन्द गुलशन |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Govind Gulshan |
उल्फ़त का दर्द-ए-ग़म का परस्तार कौन है
शेर जब खुलता है खुलते हैं मआनी क्या क्या
शख़्सियत उस ने चमक-दार बना रक्खी है
सँभल के रहिएगा ग़ुस्से में चल रही है हवा
राह-ए-उल्फ़त में मक़ामात पुराने आए
मुंतज़िर आँखें हैं मेरी शाम से
हवा के हाथ में ख़ंजर है और सब चुप हैं