भला तू और घर आए मिरे क्यूँ-कर यक़ीं कर लूँ
तख़य्युल क्यूँ न हो मेरा तिरी आवाज़-ए-पा क्यूँ हो
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वो सर ही क्या कि जिस में तुम्हारा न हो ख़याल
चर्चा हमारा इश्क़ ने क्यूँ जा-ब-जा किया
मरीज़-ए-इश्क़ की जुज़-मर्ग दुनिया में दवा क्यूँ हो
जो होनी थी वो हम-नशीं हो चुकी
दर्द को रहने भी दे दिल में दवा हो जाएगी
फिरता रहता हूँ मैं हर लहज़ा पस-ए-जाम-ए-शराब
मय न हो बू ही सही कुछ तो हो रिंदों के लिए
गुदाज़-ए-दिल से परवाना हुआ ख़ाक
रुख़्सार पर है रंग-ए-हया का फ़रोग़ आज
मरता भला है ज़ब्त की ताक़त अगर न हो