Heart Broken Poetry of Hashim Raza Jalalpuri

Heart Broken Poetry of Hashim Raza Jalalpuri
नामहाशिम रज़ा जलालपुरी
अंग्रेज़ी नामHashim Raza Jalalpuri
जन्म की तारीख1987

ज़िंदगी क्या यूँही नाशाद करेगी मुझ को

ज़र्द मौसम में भी इक शाख़ हरी रहती है

ये उस की मर्ज़ी कि मैं उस का इंतिख़ाब न था

वो सब में हम को बार-ए-दिगर देखते रहे

वो मिरे शहर में आता है चला जाता है

विसाल-ओ-हिज्र के जंजाल में पड़ा हुआ हूँ

तुम चुप रहे पयाम-ए-मोहब्बत यही तो है

तू नहीं है तो तिरे हमनाम से रिश्ता रक्खा

परिंदा क़ैद में कुल आसमान भूल गया

मुस्तक़िल हाथ मिलाते हुए थक जाता हूँ

हादिसा इश्क़ में दरपेश हुआ चाहता है

फ़ैसला हिज्र का मंज़ूर भी हो सकता है

दश्त में ख़ाक उड़ाते हैं दुआ करते हैं

बहुत दिन तक कोई चेहरा मुझे अच्छा नहीं लगता

बदन से रूह हम-आग़ोश होने वाली थी

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