वस्ल की बनती हैं इन बातों से तदबीरें कहीं
आरज़ूओं से फिरा करती हैं तक़दीरें कहीं
Anwar Masood
Wasi Shah
Rahat Indori
Habib Jalib
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1017) Peoples Rate This
मानूस हो चला था तसल्ली से हाल-ए-दिल
ख़ू समझ में नहीं आती तिरे दीवानों की
रानाई-ए-ख़याल को ठहरा दिया गुनाह
ख़ूब-रूयों से यारियाँ न गईं
और तो पास मिरे हिज्र में क्या रक्खा है
है मश्क़-ए-सुख़न जारी चक्की की मशक़्क़त भी
अक़्ल से हासिल हुई क्या क्या पशीमानी मुझे
मुनहसिर वक़्त-ए-मुक़र्रर पे मुलाक़ात हुई
महरूम-ए-तरब है दिल-ए-दिल-गीर अभी तक
जो वो नज़र बसर-ए-लुत्फ़ आम हो जाए
'हसरत' की भी क़ुबूल हो मथुरा में हाज़िरी