ख्वाब Poetry (page 116)
घर की हद में सहरा है
आशुफ़्ता चंगेज़ी
दूर तक फैला समुंदर मुझ पे साहिल हो गया
आशुफ़्ता चंगेज़ी
बादबाँ खोलेगी और बंद-ए-क़बा ले जाएगी
आशुफ़्ता चंगेज़ी
अजब रंग आँखों में आने लगे
आशुफ़्ता चंगेज़ी
आँखों के बंद बाब लिए भागते रहे
आशुफ़्ता चंगेज़ी
मिलन की साअ'त को इस तरह से अमर किया है
आनिस मुईन
बाहर भी अब अंदर जैसा सन्नाटा है
आनिस मुईन
अजब तलाश-ए-मुसलसल का इख़्तिताम हुआ
आनिस मुईन
मैं डर रहा हूँ हर इक इम्तिहान से पहले
आनन्द सरूप अंजुम
मैं क्या करूँगा रह के इस जहान में
आमिर सुहैल
कँवल जो वो कनार-ए-आबजू न हो
आमिर सुहैल
अदा है ख़्वाब है तस्कीन है तमाशा है
आमिर सुहैल
आ ही गए हैं ख़्वाब तो फिर जाएँगे कहाँ
आलोक श्रीवास्तव
ये सोचना ग़लत है कि तुम पर नज़र नहीं
आलोक श्रीवास्तव
झिलमिलाते हुए दिन-रात हमारे ले कर
आलोक श्रीवास्तव
जब भी तक़दीर का हल्का सा इशारा होगा
आलोक श्रीवास्तव
जब भी तक़दीर का हल्का सा इशारा होगा
आलोक श्रीवास्तव
धड़कते साँस लेते रुकते चलते मैं ने देखा है
आलोक श्रीवास्तव
उन के सितम भी कह नहीं सकते किसी से हम
आले रज़ा रज़ा
क़िस्मत में ख़ुशी जितनी थी हुई और ग़म भी है जितना होना है
आले रज़ा रज़ा
हुस्न की फ़ितरत में दिल-आज़ारियाँ
आले रज़ा रज़ा
हमीं ने उन की तरफ़ से मना लिया दिल को
आले रज़ा रज़ा
हस्ती के भयानक नज़्ज़ारे साथ अपने चले हैं दुनिया से
आल-ए-अहमद सूरूर
टीपू की आवाज़
आल-ए-अहमद सूरूर
वो एहतियात के मौसम बदल गए कैसे
आल-ए-अहमद सूरूर
तू पयम्बर सही ये मो'जिज़ा काफ़ी तो नहीं
आल-ए-अहमद सूरूर
सफ़र तवील सही हासिल-ए-सफ़र क्या था
आल-ए-अहमद सूरूर
ख़याल जिन का हमें रोज़-ओ-शब सताता है
आल-ए-अहमद सूरूर
हर इक जन्नत के रस्ते हो के दोज़ख़ से निकलते हैं
आल-ए-अहमद सूरूर
दिल-दादगान-ए-लज़्ज़त-ए-ईजाद क्या करें
आल-ए-अहमद सूरूर