ख्वाब Poetry (page 117)
तिरे जलाल से ख़ुर्शीद को ज़वाल हुआ
आग़ा अकबराबादी
नमाज़ कैसी कहाँ का रोज़ा अभी मैं शग़्ल-ए-शराब में हूँ
आग़ा अकबराबादी
क्या बनाए साने-ए-क़ुदरत ने प्यारे हाथ पाँव
आग़ा अकबराबादी
हमारे सामने कुछ ज़िक्र ग़ैरों का अगर होगा
आग़ा अकबराबादी
सफ़र के ब'अद भी मुझ को सफ़र में रहना है
आदिल रज़ा मंसूरी
रास्ते सिखाते हैं किस से क्या अलग रखना
आदिल रज़ा मंसूरी
जो अश्क बन के हमारी पलक पे बैठा था
आदिल रज़ा मंसूरी
एक इक लम्हे को पलकों पे सजाता हुआ घर
आदिल रज़ा मंसूरी
चाँद तारे बना के काग़ज़ पर
आदिल रज़ा मंसूरी