ख्वाब Poetry (page 57)
जाने क्या देखा था मैं ने ख़्वाब में
बशर नवाज़
नहीं बुतों के तसव्वुर से कोई दिल ख़ाली
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
वो शाह-ए-हुस्न जो बे-मिस्ल है हसीनों में
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
मिसाल-ए-तार-ए-नज़र क्या नज़र नहीं आता
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
लब-ए-रंगीं से अगर तू गुहर-अफ़शाँ होता
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
किस तरह मिलें कोई बहाना नहीं मिलता
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
हर याद हर ख़याल है लफ़्ज़ों का सिलसिला
बाक़ी सिद्दीक़ी
रस्म-ए-सज्दा भी उठा दी हम ने
बाक़ी सिद्दीक़ी
रंग-ए-दिल रंग-ए-नज़र याद आया
बाक़ी सिद्दीक़ी
कहता है हर मकीं से मकाँ बोलते रहो
बाक़ी सिद्दीक़ी
इस कार-ए-गह-ए-रंग में हम तंग नहीं क्या
बाक़ी सिद्दीक़ी
हम ज़र्रे हैं ख़ाक-ए-रहगुज़र के
बाक़ी सिद्दीक़ी
हर तरफ़ बिखर हैं रंगीं साए
बाक़ी सिद्दीक़ी
उदास बाम है दर काटने को आता है
बाक़ी अहमदपुरी
तेरी तरह मलाल मुझे भी नहीं रहा
बाक़ी अहमदपुरी
मुझ से बिछड़ के वो भी परेशान था बहुत
बाक़ी अहमदपुरी
दस्त-ए-नासेह जो मिरे जेब को इस बार लगा
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
शोर-ए-दरिया है कहानी मेरी
बाक़र नक़वी
कभी तो याद के गुल-दान में सजाऊँ उसे
बाक़र नक़वी
दवा बग़ैर कोई तिफ़्ल मर गया तो क्या हुआ
बाक़र नक़वी
टूटे शीशे की आख़िरी नज़्म
बाक़र मेहदी
रेत और दर्द
बाक़र मेहदी
निरवान
बाक़र मेहदी
नई जुस्तुजू का अलमिया
बाक़र मेहदी
गोडो
बाक़र मेहदी
बहुत है एक नज़र
बाक़र मेहदी
तबाह हो के भी इक अपनी आन बाक़ी है
बाक़र मेहदी
इस दर्जा हुआ ख़ुश कि डरा दिल से बहुत मैं
बाक़र मेहदी
बुझी बुझी है सदा-ए-नग़्मा कहीं कहीं हैं रबाब रौशन
बाक़र मेहदी
बदल के रख देंगे ये तसव्वुर कि आदमी का वक़ार क्या है
बाक़र मेहदी