नहीं बुतों के तसव्वुर से कोई दिल ख़ाली
ख़ुदा ने उन को दिए हैं मकान सीनों में
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न रहे नामा ओ पैग़ाम के लाने वाले
गया शबाब न पैग़ाम-ए-वस्ल-ए-यार आया
देखी जो ज़ुल्फ़-ए-यार तबीअत सँभल गई
पर्दा उलट के उस ने जो चेहरा दिखा दिया
अगर हयात है देखेंगे एक दिन दीदार
बे-बुलाए हुए जाना मुझे मंज़ूर नहीं
मतलब न काबे से न इरादा कनिश्त का
लब-ए-रंगीं से अगर तू गुहर-अफ़शाँ होता
असर ज़ुल्फ़ का बरमला हो गया
उर्यां हरारत-ए-तप-ए-फ़ुर्क़त से मैं रहा
क़मर की वो ख़ुर्शीद तस्वीर है
किस तरह मिलें कोई बहाना नहीं मिलता