किस तरह मिलें कोई बहाना नहीं मिलता
हम जा नहीं सकते उन्हें आना नहीं मिलता
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देख कर तूल-ए-शब-ए-हिज्र दुआ करता हूँ
लाख पर्दे से रुख़-ए-अनवर अयाँ हो जाएगा
क़मर की वो ख़ुर्शीद तस्वीर है
उर्यां हरारत-ए-तप-ए-फ़ुर्क़त से मैं रहा
ज़ेर-ए-ज़मीं हूँ तिश्ना-ए-दीदार-ए-यार का
लब-ए-रंगीं से अगर तू गुहर-अफ़शाँ होता
नहीं बुतों के तसव्वुर से कोई दिल ख़ाली
जोश-ए-वहशत यही कहता है निहायत कम है
इतना तो जज़्ब-ए-इश्क़ ने बारे असर किया
अगर हयात है देखेंगे एक दिन दीदार