देख कर तूल-ए-शब-ए-हिज्र दुआ करता हूँ
वस्ल के रोज़ से भी उम्र मिरी कम हो जाए
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बाद-ए-फ़ना भी है मरज़-ए-इश्क़ का असर
मैं अगर रोने लगूँ रुतबा-ए-वाला बढ़ जाए
लाख पर्दे से रुख़-ए-अनवर अयाँ हो जाएगा
छुप सका दम भर न राज़-ए-दिल फ़िराक़-ए-यार में
वो शाह-ए-हुस्न जो बे-मिस्ल है हसीनों में
किस तरह मिलें कोई बहाना नहीं मिलता
उर्यां हरारत-ए-तप-ए-फ़ुर्क़त से मैं रहा
न रहे नामा ओ पैग़ाम के लाने वाले
पूछा अगर किसी ने मिरा आ के हाल-ए-दिल
मिसाल-ए-तार-ए-नज़र क्या नज़र नहीं आता
देखी जो ज़ुल्फ़-ए-यार तबीअत सँभल गई