बाद-ए-फ़ना भी है मरज़-ए-इश्क़ का असर
देखो कि रंग ज़र्द है मेरे ग़ुबार का
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छुप सका दम भर न राज़-ए-दिल फ़िराक़-ए-यार में
क़मर की वो ख़ुर्शीद तस्वीर है
रंग से पैरहन-ए-सादा हिनाई हो जाए
किस तरह मिलें कोई बहाना नहीं मिलता
ख़ुद-फ़रोशी को जो तू निकले ब-शक्ल-ए-यूसुफ़
मिसाल-ए-तार-ए-नज़र क्या नज़र नहीं आता
ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है
नहीं बुतों के तसव्वुर से कोई दिल ख़ाली
हम तो अपनों से भी बेगाना हुए उल्फ़त में
इतना तो जज़्ब-ए-इश्क़ ने बारे असर किया