जोश-ए-वहशत यही कहता है निहायत कम है
दो जहाँ से भी अगर वुसअत-ए-सहरा बढ़ जाए
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Wasi Shah
Jaun Eliya
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(803) Peoples Rate This
मिसाल-ए-तार-ए-नज़र क्या नज़र नहीं आता
ऐ सनम वस्ल की तदबीरों से क्या होता है
ख़ुद-फ़रोशी को जो तू निकले ब-शक्ल-ए-यूसुफ़
न कोई उन के सिवा और जान-ए-जाँ देखा
हम तो अपनों से भी बेगाना हुए उल्फ़त में
उर्यां हरारत-ए-तप-ए-फ़ुर्क़त से मैं रहा
जब अयाँ सुब्ह को वो नूर-ए-मुजस्सम हो जाए
मतलब न काबे से न इरादा कनिश्त का
बे-बुलाए हुए जाना मुझे मंज़ूर नहीं
चाँद सा चेहरा जो उस का आश्कारा हो गया
ज़ेर-ए-ज़मीं हूँ तिश्ना-ए-दीदार-ए-यार का