Friendship Poetry (page 52)
वो सुन कर हूर की तारीफ़ पर्दे से निकल आए
बेख़ुद देहलवी
शौक़ अपना आप मैं अपनी ज़बाँ से क्यूँ कहूँ
बेख़ुद देहलवी
शम-ए-मज़ार थी न कोई सोगवार था
बेख़ुद देहलवी
मुँह फेर कर वो कहते हैं बस मान जाइए
बेख़ुद देहलवी
मुझ को न दिल पसंद न वो बेवफ़ा पसंद
बेख़ुद देहलवी
माशूक़ हमें बात का पूरा नहीं मिलता
बेख़ुद देहलवी
लड़ाएँ आँख वो तिरछी नज़र का वार रहने दें
बेख़ुद देहलवी
क्यूँ कह के दिल का हाल उसे बद-गुमाँ करूँ
बेख़ुद देहलवी
दोनों ही की जानिब से हो गर अहद-ए-वफ़ा हो
बेख़ुद देहलवी
ऐसा बना दिया तुझे क़ुदरत ख़ुदा की है
बेख़ुद देहलवी
आशिक़ समझ रहे हैं मुझे दिल लगी से आप
बेख़ुद देहलवी
आशिक़ हैं मगर इश्क़ नुमायाँ नहीं रखते
बेख़ुद देहलवी
दैर-ओ-हरम को देख लिया ख़ाक भी नहीं
बेखुद बदायुनी
यूँही रहा जो बुतों पर निसार दिल मेरा
बेखुद बदायुनी
साथ साथ अहल-ए-तमन्ना का वो मुज़्तर जाना
बेखुद बदायुनी
रक़ीबों का मुझ से गिला हो रहा है
बेखुद बदायुनी
क्यूँ मैं अब क़ाबिल-ए-जफ़ा न रहा
बेखुद बदायुनी
कभी हया उन्हें आई कभी ग़ुरूर आया
बेखुद बदायुनी
इस बज़्म में न होश रहेगा ज़रा मुझे
बेखुद बदायुनी
गर्दिश-ए-चश्म-ए-यार ने मारा
बेखुद बदायुनी
दर्द-ए-दिल में कमी न हो जाए
बेखुद बदायुनी
इश्क़-विश्क़ ये चाहत-वाहत मन का भुलावा फिर मन भी अपना क्या
बेकल उत्साही
उधर वो हाथों के पत्थर बदलते रहते हैं
बेकल उत्साही
तमन्ना बन गई है माया-ए-इल्ज़ाम क्या होगा
बेकल उत्साही
हम चटानों की तरह साहिल पे ढाले जाएँगे
बेकल उत्साही
भीतर बसने वाला ख़ुद बाहर की सैर करे मौला ख़ैर करे
बेकल उत्साही
इक बे-वफ़ा को प्यार किया हाए क्या किया
बहज़ाद लखनवी
कुछ बे-अदबी और शब-ए-वस्ल नहीं की
बेगम लखनवी
बरसों ग़म-ए-गेसू में गिरफ़्तार तो रक्खा
बेगम लखनवी
बहुत ज़ोरों पे वी-सी-आर था कल शब जहाँ मैं था
बेदिल जौनपूरी