Friendship Poetry (page 54)
कोई समझाईयो यारो मिरा महबूब जाता है
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
कोई किसी का कहीं आश्ना नहीं देखा
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
कहा अग़्यार का हक़ में मिरे मंज़ूर मत कीजो
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
जादू थी सेहर थी बला थी
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
जा कहे कू-ए-यार में कोई
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
इश्वा है नाज़ है ग़म्ज़ा है अदा है क्या है
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
दिल अब उस दिल-शिकन के पास कहाँ
बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान
शौक़ को बे-अदब किया इश्क़ को हौसला दिया
बासित भोपाली
सब काएनात-ए-हुस्न का हासिल लिए हुए
बासित भोपाली
इश्क़-ए-सितम-परस्त क्या हुस्न-ए-सितम-शिआ'र क्या
बासित भोपाली
हज़ार कहता रहा मैं कि यार एक मिनट
बासिर सुल्तान काज़मी
ज़ौक़-ए-उल्फ़त अब भी है राहत का अरमाँ अब भी है
बशीरुद्दीन अहमद देहलवी
माना उस को गिला नहीं मुझ से
बशीर महताब
हम हथेली पे जान रखते हैं
बशीर महताब
इक लम्हा भी गुज़ारूँ भला क्यूँ किसी के साथ
बशीर महताब
चले जाना मगर सुन लो मिरे दिल में ये हसरत है
बशीर महताब
लोगो हम छान चुके जा के समुंदर सारे
बशीर फ़ारूक़ी
वो सितम-परवर ब-चश्म अश्क-बार आ ही गया
बशीर फ़ारूक़
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
बशीर बद्र
इतनी मिलती है मिरी ग़ज़लों से सूरत तेरी
बशीर बद्र
हम दिल्ली भी हो आए हैं लाहौर भी घूमे
बशीर बद्र
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
बशीर बद्र
भूल शायद बहुत बड़ी कर ली
बशीर बद्र
अहबाब भी ग़ैरों की अदा सीख गए हैं
बशीर बद्र
वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब समझते होंगे
बशीर बद्र
शो'ला-ए-गुल गुलाब शो'ला क्या
बशीर बद्र
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
बशीर बद्र
मान मौसम का कहा छाई घटा जाम उठा
बशीर बद्र
होंटों पे मोहब्बत के फ़साने नहीं आते
बशीर बद्र
आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा
बशीर बद्र