Friendship Poetry (page 56)
रखता है यूँ वो ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम दोश पर
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
इस लब से रस न चूसे क़दह और क़दह से हम
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
हाँ मियाँ सच है तुम्हारी तो बला ही जाने
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
ग़ैरत-ए-गुल है तू और चाक-गरेबाँ हम हैं
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
दिल ख़ूँ है ग़म से और जिगर यक-न-शुद दो-शुद
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
दिल ख़ूँ है ग़म से और जिगर यक न-शुद दो शुद
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
आहें अफ़्लाक में मिल जाती हैं
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
ऐ कहकशाँ-नवाज़ मुक़द्दर उजाल दे
बाक़र नक़वी
मुझे दुश्मन से अपने इश्क़ सा है
बाक़र मेहदी
मेरा जनम दिन
बाक़र मेहदी
बदल के रख देंगे ये तसव्वुर कि आदमी का वक़ार क्या है
बाक़र मेहदी
औरों पे इत्तिफ़ाक़ से सब्क़त मिली मुझे
बाक़र मेहदी
शाहिद-ए-ग़ैब हुवैदा न हुआ था सो हुआ
बाक़र आगाह वेलोरी
रहता है ज़ुल्फ़-ए-यार मिरे मन से मन लगा
बाक़र आगाह वेलोरी
अगरचे दिल को ले साथ अपने आया अश्क मिरा
बाक़र आगाह वेलोरी
माँ
बक़ा बलूच
बीसवीं सदी के हम शाइ'र-ए-परेशाँ हैं
बनो ताहिरा सईद
शायद
बलराज कोमल
नन्हा शहसवार
बलराज कोमल
दिल का मोआ'मला वही महशर वही रहा
बलराज कोमल
रुत न बदले तो भी अफ़्सुर्दा शजर लगता है
बख़्श लाइलपूरी
यार को हम ने बरमला देखा
बहराम जी
मैं बरहमन ओ शैख़ की तकरार से समझा
बहराम जी
कहता है यार जुर्म की पाते हो तुम सज़ा
बहराम जी
ढूँढ कर दिल में निकाला तुझ को यार
बहराम जी
यार को हम ने बरमला देखा
बहराम जी
रखा सर पर जो आया यार का ख़त
बहराम जी
कुफ़्र एक रंग-ए-क़ुदरत-ए-बे-इंतिहा में है
बहराम जी
कब तसव्वुर यार-ए-गुल-रुख़्सार का फ़े'अल-ए-अबस
बहराम जी
हो चुका वाज़ का असर वाइज़
बहराम जी