Friendship Poetry (page 55)
जल्वों का उन के दिल को तलब-गार कर दिया
बशीरुद्दीन राज़
हुई मुद्दतें ऐ दिल-ए-हज़ीं न पयाम है न सलाम है
बशीरुद्दीन राज़
जुदा भी हो के वो इक पल कभी जुदा न हुआ
बशीर अहमद बशीर
हर गाम पे आवारगी-ओ-दर-ब-दरी में
बशीर अहमद बशीर
पता नहीं वो कौन था
बशर नवाज़
मुझे कहना है
बशर नवाज़
कोई सनम तो हो कोई अपना ख़ुदा तो हो
बशर नवाज़
जब कभी होंगे तो हम माइल-ए-ग़म ही होंगे
बशर नवाज़
छेड़ा ज़रा सबा ने तो गुलनार हो गए
बशर नवाज़
ब-हर-उनवाँ मोहब्बत को बहार-ए-ज़िंदगी कहिए
बशर नवाज़
गया शबाब न पैग़ाम-ए-वस्ल-ए-यार आया
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
छुप सका दम भर न राज़-ए-दिल फ़िराक़-ए-यार में
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
ज़ेर-ए-ज़मीं हूँ तिश्ना-ए-दीदार-ए-यार का
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
शम्अ भी इस सफ़ा से जलती है
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
रंग से पैरहन-ए-सादा हिनाई हो जाए
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
लाख पर्दे से रुख़-ए-अनवर अयाँ हो जाएगा
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
गया शबाब न पैग़ाम-ए-वस्ल-ए-यार आया
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
देखी जो ज़ुल्फ़-ए-यार तबीअत सँभल गई
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
चाँद सा चेहरा जो उस का आश्कारा हो गया
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
दिल जो सूरत-गर-ए-मअ'नी का सनम-ख़ाना बने
बर्क़ देहलवी
दोस्ती ख़ून-ए-जिगर चाहती है
बाक़ी सिद्दीक़ी
दोस्त हर ऐब छुपा लेते हैं
बाक़ी सिद्दीक़ी
वक़्त रस्ते में खड़ा है कि नहीं
बाक़ी सिद्दीक़ी
उन का या अपना तमाशा देखो
बाक़ी सिद्दीक़ी
तिरी निगाह का अंदाज़ क्या नज़र आया
बाक़ी सिद्दीक़ी
सब दोस्त मस्लहत के दुकानों में बिक गए
बाक़ी अहमदपुरी
दोस्त नाराज़ हो गए कितने
बाक़ी अहमदपुरी
ये रुख़-ए-यार नहीं ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ के तले
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
यकसाँ लगें हैं उन को तो दैर-ओ-हरम बहम
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
सैर में तेरी है बुलबुल बोस्ताँ बे-कार है
बक़ा उल्लाह 'बक़ा'