सब दोस्त मस्लहत के दुकानों में बिक गए
दुश्मन तो पुर-ख़ुलूस अदावत में अब भी है
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उड़े नहीं हैं उड़ाए हुए परिंदे हैं
दश्त-ओ-दरिया के ये उस पार कहाँ तक जाती
उदास बाम है दर काटने को आता है
सारी बस्ती में फ़क़त मेरा ही घर है बे-चराग़
दोस्त नाराज़ हो गए कितने
रोज़-ए-वहशत है मिरे शहर में वीरानी की
तेरी तरह मलाल मुझे भी नहीं रहा
मुझ से बिछड़ के वो भी परेशान था बहुत
सामने सब के न बोलेंगे हमारा क्या है
तू नहीं तो तेरा दर्द-ए-जाँ-फ़ज़ा मिल जाएगा
बहुत जल्दी थी घर जाने की लेकिन