दोस्त नाराज़ हो गए कितने
इक ज़रा आइना दिखाने में
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सारी बस्ती में फ़क़त मेरा ही घर है बे-चराग़
मुझ से बिछड़ के वो भी परेशान था बहुत
बहुत जल्दी थी घर जाने की लेकिन
दश्त-ओ-दरिया के ये उस पार कहाँ तक जाती
उड़े नहीं हैं उड़ाए हुए परिंदे हैं
रोज़-ए-वहशत है मिरे शहर में वीरानी की
सामने सब के न बोलेंगे हमारा क्या है
उदास बाम है दर काटने को आता है
तू नहीं तो तेरा दर्द-ए-जाँ-फ़ज़ा मिल जाएगा
सब दोस्त मस्लहत के दुकानों में बिक गए
तेरी तरह मलाल मुझे भी नहीं रहा