Friendship Poetry (page 51)
मिरी ज़िंदगी है तन्हा तुम्हें कुछ असर तो होता
बबल्स होरा सबा
मसर्रत को मसर्रत ग़म को जो बस ग़म समझते हैं
ब्रहमा नन्द जलीस
देने वाले ये ज़िंदगी दी है
ब्रहमा नन्द जलीस
जब ख़िज़ाँ आई चमन में सब दग़ा देने लगे
बूम मेरठी
इस क़दर बढ़ गई वहशत तिरे दीवाने की
बूम मेरठी
रुख़ पे गेसू जो बिखर जाएँगे
बिस्मिल अज़ीमाबादी
निगाह-ए-क़हर होगी या मोहब्बत की नज़र होगी
बिस्मिल अज़ीमाबादी
न अपने ज़ब्त को रुस्वा करो सता के मुझे
बिस्मिल अज़ीमाबादी
साज़-ए-हस्ती का अजब जोश नज़र आता है
बिस्मिल इलाहाबादी
क़ाबिल-ए-शरह मिरा हाल-ए-दिल-ए-ज़ार न था
बिस्मिल इलाहाबादी
किसी तरह भी किसी से न दिल लगाना था
बिस्मिल इलाहाबादी
क्या रौशनी-ए-हुस्न-ए-सबीह अंजुमन में है
बिशन नरायण दराबर
मोहब्बत नग़्मा भी है साज़ भी है
बिर्ज लाल रअना
जिस्म में ख़्वाहिश न थी एहसास में काँटा न था
बिमल कृष्ण अश्क
जिस की हर बात में क़हक़हा जज़्ब था मैं न था दोस्तो
बिमल कृष्ण अश्क
ऐसे में रोज़ रोज़ कोई ढूँडता मुझे
बिमल कृष्ण अश्क
पाबंदियों से अपनी निकलते वो पा न थे
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
कोई आहट कोई सरगोशी सदा कुछ भी नहीं
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
बे-तअल्लुक़ सारे रिश्ते कौन किस का आश्ना
बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
लगा के नक़्ब किसी रोज़ मार सकते हैं
बिल्क़ीस ख़ान
दुश्मन ब-नाम-ए-दोस्त बनाना मुझे भी है
बिल्क़ीस ख़ान
दीवार-ए-काबा 19 नवम्बर 1989
बिलाल अहमद
सितारे हार चुकी थी सभी जुआरी रात
भवेश दिलशाद
फिर आई फ़स्ल-ए-गुल फिर ज़ख़्म-ए-दिल रह रह के पकते हैं
भारतेंदु हरिश्चंद्र
जहाँ देखो वहाँ मौजूद मेरा कृष्ण प्यारा है
भारतेंदु हरिश्चंद्र
गले मुझ को लगा लो ऐ मिरे दिलदार होली में
भारतेंदु हरिश्चंद्र
दिल मिरा तीर-ए-सितम-गर का निशाना हो गया
भारतेंदु हरिश्चंद्र
अजब जौबन है गुल पर आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहारी है
भारतेंदु हरिश्चंद्र
सौदा-ए-इश्क़ और है वहशत कुछ और शय
बेख़ुद देहलवी
हो लिए जिस के हो लिए 'बेख़ुद'
बेख़ुद देहलवी