Friendship Poetry (page 49)
चुप-चाप सुनती रहती है पहरों शब-ए-फ़िराक़
दाग़ देहलवी
छेड़ माशूक़ से कीजे तो ज़रा थम थम कर
दाग़ देहलवी
ज़ाहिद न कह बुरी कि ये मस्ताने आदमी हैं
दाग़ देहलवी
उज़्र उन की ज़बान से निकला
दाग़ देहलवी
उस के दर तक किसे रसाई है
दाग़ देहलवी
उन के इक जाँ-निसार हम भी हैं
दाग़ देहलवी
तेरी सूरत को देखता हूँ मैं
दाग़ देहलवी
सितम ही करना जफ़ा ही करना निगाह-ए-उल्फ़त कभी न करना
दाग़ देहलवी
साफ़ कब इम्तिहान लेते हैं
दाग़ देहलवी
पुकारती है ख़मोशी मिरी फ़ुग़ाँ की तरह
दाग़ देहलवी
फिरे राह से वो यहाँ आते आते
दाग़ देहलवी
ना-रवा कहिए ना-सज़ा कहिए
दाग़ देहलवी
मुमकिन नहीं कि तेरी मोहब्बत की बू न हो
दाग़ देहलवी
मुझे ऐ अहल-ए-काबा याद क्या मय-ख़ाना आता है
दाग़ देहलवी
मुझ सा न दे ज़माने को परवरदिगार दिल
दाग़ देहलवी
मोहब्बत में आराम सब चाहते हैं
दाग़ देहलवी
मज़े इश्क़ के कुछ वही जानते हैं
दाग़ देहलवी
लुत्फ़ वो इश्क़ में पाए हैं कि जी जानता है
दाग़ देहलवी
कुछ लाग कुछ लगाव मोहब्बत में चाहिए
दाग़ देहलवी
जो हो सकता है उस से वो किसी से हो नहीं सकता
दाग़ देहलवी
इस अदा से वो जफ़ा करते हैं
दाग़ देहलवी
हाथ निकले अपने दोनों काम के
दाग़ देहलवी
ग़ज़ब किया तिरे वअ'दे पे ए'तिबार किया
दाग़ देहलवी
ग़म से कहीं नजात मिले चैन पाएँ हम
दाग़ देहलवी
फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैं
दाग़ देहलवी
दिल मुब्तला-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार ही रहा
दाग़ देहलवी
दिल गया तुम ने लिया हम क्या करें
दाग़ देहलवी
देख कर जौबन तिरा किस किस को हैरानी हुई
दाग़ देहलवी
डरते हैं चश्म ओ ज़ुल्फ़ ओ निगाह ओ अदा से हम
दाग़ देहलवी
भवें तनती हैं ख़ंजर हाथ में है तन के बैठे हैं
दाग़ देहलवी