Friendship Poetry (page 48)
चश्म-ए-बीना हो तो क़ैद-ए-हरम-ओ-तूर नहीं
दर्शन सिंह
बहुत मुश्किल है तर्क-ए-आरज़ू रब्त-आश्ना हो कर
दर्शन सिंह
क़त्ल-ए-आशिक़ किसी माशूक़ से कुछ दूर न था
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
दुश्मनी ने सुना न होवेगा
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
'दर्द' के मिलने से ऐ यार बुरा क्यूँ माना
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
बाग़-ए-जहाँ के गुल हैं या ख़ार हैं तो हम हैं
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
आँखें भी हाए नज़अ में अपनी बदल गईं
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
तुझी को जो याँ जल्वा-फ़रमा न देखा
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
तोहमत-ए-चंद अपने ज़िम्मे धर चले
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
क़त्ल-ए-आशिक़ किसी माशूक़ से कुछ दूर न था
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
मिरा जी है जब तक तिरी जुस्तुजू है
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
मदरसा या दैर था या काबा या बुत-ख़ाना था
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
मदरसा या दैर था या काबा या बुत-ख़ाना था
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
इश्क़ हर-चंद मिरी जान सदा खाता है
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
बाग़-ए-जहाँ के गुल हैं या ख़ार हैं तो हम हैं
ख़्वाजा मीर 'दर्द'
साक़ी मुझे शबाब का रसिया कहे सो हूँ
दानिश नज़ीर दानी
शीशे से ज़ियादा नाज़ुक था ये शीशा-ए-दिल जो टूट गया
दानिश फ़राही
न वो ताएरों का जमघट न वो शाख़-ए-आशियाना
दानिश फ़राही
दुआ हमारी कभी बा-असर नहीं होती
दानिश फ़राही
दिल था बे-कैफ़ मोहब्बत की ख़ता से पहले
दानिश फ़राही
ज़िद हर इक बात पर नहीं अच्छी
दाग़ देहलवी
ज़माना दोस्ती पर इन हसीनों की न इतराए
दाग़ देहलवी
वो ज़माना भी तुम्हें याद है तुम कहते थे
दाग़ देहलवी
तुम अगर अपनी गूँ के हो माशूक़
दाग़ देहलवी
नहीं खेल ऐ 'दाग़' यारों से कह दो
दाग़ देहलवी
क्यूँ वस्ल की शब हाथ लगाने नहीं देते
दाग़ देहलवी
क्या लुत्फ़-ए-दोस्ती कि नहीं लुत्फ़-ए-दुश्मनी
दाग़ देहलवी
कल तक तो आश्ना थे मगर आज ग़ैर हो
दाग़ देहलवी
इस वहम में वो 'दाग़' को मरने नहीं देते
दाग़ देहलवी
ग़श खा के 'दाग़' यार के क़दमों पे गिर पड़ा
दाग़ देहलवी